दूसरों की भूलो के लिए स्वयं को कष्ट देना क्रोध है शिव पूजा में मन की निर्मलता महत्वपूर्ण है- सामग्री नहीं
दूसरों की भूलो के लिए स्वयं को कष्ट देना क्रोध है
शिव पूजा में मन की निर्मलता महत्वपूर्ण है- सामग्री नहीं
शिव का दर्शन दूर से करें और परिक्रमा केवल जलधारी तक ही करें
सेंधवा – रघुवंश पब्लिक स्कूल के प्रांगण में व्यास गादी से श्री गिरी बापू ने कहा- हम देवी देवताओं की पूजा मूर्ति स्वरूप में करते हैं जबकि शिव की पूजा तीन प्रकार से होती है-ओंकार ध्वनि जो नाभि से उठकर मतिष्क तक पहुंचती है यह शिव की प्रथम पूजा है यह स्वास्थ्य वर्धक भी है। इसके बाद दूसरा स्थान लिंग पूजा का है जो निराकार स्वरूप है। अंत में मूर्ति पूजा है। सार यह है कि ओंकार व लिंग पूजा प्रधान है। गुरु नानक ने एक ओंकार सतनाम कह कर उसका ध्यान किया है।
शिवलिंग में समस्त देवगण समाहित है। मूर्ति, स्थान और काल के साथ बदलती है। सार इतना है की मूर्ति और अवतार की परंपरा बाद में प्रारंभ हुई। समय के अंतराल में अवतार के अंगों के आधार पर अनेकों संप्रदाय बने इस तरह विभेद का जन्म हुआ। शिवलिंग की प्रथम पूजा महाशिवरात्रि से प्रारंभ हुई। इस दिन श्री हरि व ब्रह्मा ने पुजन किया। महाशिवरात्रि भोग की नहीं योग का उत्सव है इस दिन ध्यान करना चाहिए।
जल अभिषेक की परंपरा एकाग्रता की स्थापना के लिए है शिव की में आराधना निर्मल मन का महत्व मन का है पूजा सामग्री का नहीं । जो मन का रोगी है वह परमात्मा से दूर है क्योंकि दूसरों की भूल के लिए स्वयं को दंड देना क्रोध है। ऐसा व्यक्ति मनोरोगी है।
वद्धों के लिए भूतकाल का महत्व है परंतु जो युवा है वह शिव के ध्यान से अपना भविष्य उज्जवल कर सकता है।
शिव की जलाधारी भवानी का प्रतीक है इसलिए पूजा की सामग्री दूर रखना चाहिए। यह आत्म कल्याण का स्थान है। शिव की परिक्रमा जलाधारी तक ही करते हैं हमें ज्यादातर शिव के दर्शन दूर से करना चाहिए। गर्भ ग्रह में पूर्ण पवित्र व्यक्ति प्रवेश ही कर सकता है।
जन्म, जरा, मुत्यु और व्याधी से जो मुक्त कर दे वह महादेव है। जिसे माया छल सके वह जीव है परन्तु माया जिसके वश में है वह परमात्मा है। शिव जगत के पिता है इसलिए उसके घर जाति भेद नहीं है।
जहा महादेव नहीं है वहा तार्थ नहीं है। जिसमें महादेव की महिमा नहीं है वह केवल पुराण है। धर्म पुराण नहीं। इसलिए हर धर्म ग्रथ में महादेव है तुलसी ने भी मानस में शिव की सुन्तरतम वंदना की है।
अयोनि और अमर पुत्र नंदी शिलात मुनि को केवल महादेव दे सके। वह शिव का ही रूप है इसलिए शिव मंदिर में आगे उसकी प्रतिमा होती है। जो भक्त ओम नमः शिवाय का जाप करता है उसके भाग्य के द्वार महादेव खोल देते हैं।