सनातन संस्कृति पर कुठाराघात करता हुआ अंग्रेजी नववर्ष

मॉल सज गए हैं, मंदिरों में भी व्यवस्था चाक-चौबंद हो रही है ,कहीं-कहीं बॉलीवुड से उत्पन्न एक फूहड़ सा गीत भी सुनाई दे रहा है- “आने वाले साल को सलाम ,जाने वाले साल को सलाम, नए साल का पहला जाम, आपके नाम”
31 दिसंबर की रात से 1 जनवरी की रात तक पार्टियां ,घूमना- फिरना ,मौज मस्ती,पाश्चात्य संस्कृति की मानसिक गुलामी प्रदर्शित होगी। हमारी आने वाली पीढ़ियां एवं हमारे गोद में जो बच्चे हैं, आने वाले समय में कहीं 1 जनवरी को ही कोई विशेष पर्व या त्यौहार ना मान बैठे ।हमें विचार करना होगा। 4G और 5G स्पीड से दौड़ते हुए मैसेज और डेढ़ दिन का पाश्चात्य संस्कृति का शुभारंभ तांडव।। व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के कॉपी पेस्ट मास्टर आएंगे– “साल बदल रहा है, साथ नही”, ढेरों शुभकामनाएं,कुछ संस्कारी तो 31 की शाम से ही अपराधी बन जाएंगे – मन, वचन ,वाणी ,कर्म से हुए अपराधो की क्षमा मांगते मैसेज व्हाट्सएप पर आएंगे। शुभकामनाओं से व्हाट्सएप भर दिए जाएंगे । अपनी सनातन संस्कृति को भूल कर पाश्चात्य संस्कृति में जैसे डूब ही जाएंगे ।संस्कारी मेंसेजो का आदान प्रदान करने वाले अधिकांश – जाम से जाम टकराएंगे ।समाचार पत्रों में पढ़ा था, हमने भी यह कहीं सुना था ,इंदौर के नाइट कल्चर के विरोध में कुछ लोगों ने ताना-बाना बुना था। नाइट कल्चर पाश्चात्य संस्कृति के वृक्ष का ही एक फल है। अभी नया साल मनाएंगे ,फिर हमारे युवा बड़े उत्साह से 7 दिन का प्रेम पर्व वैलेंटाइन डे भी बनाएंगे ।
जिस संस्कृति में मातृशक्ति के पूजन के लिए मातृशक्ति के प्रति कृतज्ञता का भाव प्रकट करने के लिए हमें 1 वर्ष में चार नवरात्र दिए हैं, उसी संस्कृति के लोग मदर्स डे को अपना रहे हैं। बोलने में डर लगता है साहब! जाने कितने डे प्रकट कर दिए हैं सीता और सावित्री के इस देश में ।
इंदौर की सड़कों पर नाइट कल्चर का जो तांडव देखते हैं ,उससे मन घबराता है। हम ना तो पूरे भौतिकवादी हो पाए, ना हो पाए ना ही पूरे आध्यात्मवादी।
ना ही पूरे पाश्चात्य हो पाए, ना ही पूरे सनातनी।
क्या विशेष है? अंग्रेजी कैलेंडर ही तो बदल रहा है। तारीख ही तो बदल रही है। भारतीय सनातन संस्कृति का नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से शक्ति की उपासना का पर्व प्रारंभ होता है ।तप – त्याग -उपासना की आधारशिला पर नवचेतना ,नवशक्ति का सृजन करता है हमारा नव संवत्सर ,हमारी सनातन संस्कृति का नववर्ष ।
थोड़ा सा विचार कीजिए- हम पाश्चात्य संस्कृति को अपनाकर किस विकृति को जन्म दे रहे हैं ?उसके भविष्य में परिणाम क्या होंगे?
हां साहब इस लेख को पढ़कर मुस्कुरा लेना ,मुझे बैकवर्ड ,रूढ़िवादी, कट्टरपंथी मानसिकता का बोल लेना पर सनातन संस्कृति से श्रेष्ठ कुछ नहीं है। हमें लौटकर पूरब की ओर ही आना होगा, क्योंकि ज्ञान का सूर्य पूर्व से ही उदय होता है ।सुख शांति समृद्धि सनातन में ही संभव है। हमारी संस्कृति में उदारता है, सहिष्णुता है। हम सभी संस्कृतियों का सम्मान करते हैं ।किंतु इसका मतलब यह नहीं कि हम अपनी संस्कृति को भूल कर दूसरों की संस्कृति को अपना ले।हमारे देश की जनता ईश्वर वादी है, 1 जनवरी पर भजन – कीर्तन के आयोजन भी होते हैं ,मंदिरों में लंबी कतारें भी लगती है ।भजन कीर्तन होना भी चाहिए। मंदिरों में तो रोज कतारें लगना भी चाहिए ।पर हम 1 जनवरी को इतना विशिष्ट क्यों बना रहे हैं? इस पर भी विचार करना चाहिए ।समाचार पत्रों में पढ़ने – देखने में आता है – नाइट कल्चर के दुष्परिणाम ।यह हमारी संस्कृति का अंग तो कभी भी नहीं था ।फूहड़ता, अश्लील गानों पर नृत्य।आधी रात तक घरों से बाहर रहना ,और एक नई विषाक्त सोच को जन्म देना। यह हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं है। यह युवा भारत है। ,हम विश्व गुरु बनने की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। अगर हम अपनी मूल संस्कृति के अनुरूप नहीं रहे, हम अपनी संस्कृति व सभ्यता के प्रति निष्ठावान नहीं रहे तो भारत विश्व गुरु बनेगा यह बात करना बेईमानी है।सनातन की रक्षा करने वाले भागवत कथा वक्ता,तथा कथा केसरी, कथावाचक संत महंतो को अपने अनुयायियों को समझाना चाहिए ,और आदेशित करना चाहिए कि हमें पाश्चात्य संस्कृति से किस तरह से अपने परिवार की और समाज की रक्षा कर सनातन संस्कृति के मार्ग पर चलना चाहिए।।
*पं कपिल शर्मा (काशी महाराज)*
*महू (मध्यप्रदेश)*
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