महादेव की भव्यता अलंकार नहीं साधना है।
दिगंबर का अर्थ है कपट रहित दिशाएँ जिसके वस्त्र है
डिजे ध्वनि पर बंधन लगानाः पर्यावरण संरक्षण है।
वर्तमान में जीने से भविष्य का सृजन होता है
वस्त्रों का संग्रहण नहीं वितरण करें
शव यात्रा में सम्मिलित लोग प्रशंसा करें तो समझो प्राणी स्वर्ग में गया
मौन की साधना ही विवाद का समाधान है
सेंधवा- रघुवंश पब्लिक स्कूल के प्रांगण में व्यास गादी से श्री गिरी बापू ने कहा – सती के तप से प्रसन्न होकर शिव ने उससे विवाह करने का वर दिया। विवाह के समय समस्त देवी-देवता सज धज कर आए परंतु शिव भभूत लगाए सर्पों का आभूषण पहने एक शिला पर बैठे हैं। इस स्वरूप को देखकर देवता हंसने लगे। यहा यह संदेश है कि दूसरों की न्यूनता देखकर हंसना पाप है।
अंत में देव गुरु बृहस्पति ने शिव वंदना गाई। आकाश आपकी विमल आकृति है। आप कपाली है अर्थात आपकी जटा स्वरूप आकाश है। इसलिए शिव कहते हैं व्यौम केशाय नमः।
शिव की ध्वजा धर्म ध्वजा है जिस पर नंदी की प्रतिमा है दिशाएँ कपट रहित होने का प्रतीक है इसलिए शिव को दिगंबर कहते हैं। सर्प महादेव के आभूषण हैं शिव के गले में सर्प यह संदेश देते है कि वर्तमान में सत्कार्य करो क्योंकि मृत्यु का आना निश्चित है। सद विचारों का विस्तार कल्याणकारी है। इस धरती पर आए हैं तो सत्कर्म करें इस संबंध में बापू ने दो उदाहरण दिये आपने कहा गुलशन कुमार ने नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का पुनर्निर्माण कराया तथा कई तीर्थों में अन्य क्षेत्र चलते हैं। इसी तरह गुजरात में एक व्यक्ति ने अपनी पुत्री को दहेज में वस्तुओं की अपेक्षा नहीं उसके गांव में एक जलाशय बनवा कर दिया।
सत कर्मों से आदमी स्वर्ग में गया या नर्क में इसका पता लगाना सरल है यदि शव यात्रा में लोग जाने वाले के कर्मों की प्रशंसा करें तो समझों स्वर्ग में गया है।
आप ने कहा जीवन पानी का बुलबूला है। मृत्यु एक दिन आना निश्चत है इसलिए कल की नहीं आज की चिंता करे और सत् कर्मों के साथ मुस्कुराते हुए जीवन जीना चाहिए। जहॉ परिवार में स्नेह का पारावार है वह स्वर्ग तुल्य है। अंत में महादेव को देवताओं ने अपने अंलकारों से सजाया। विष्णु ने पिताम्बर देकर स्वयं को गौरवांवित किया। इंद्र ने मुकुट दिया यहा यह संदेश है कि त्याग ही देवत्व है।
जब शिव प्रजापति के घर पहुँचे तो शिव की ओर से विष्णु और लक्ष्मी ने आगे आकर सम्मान किया।
आप ने कहा कथा मरने के बाद क्या देती है यह पता नहीं पंरतु संस्कार वान बने। वाणी और कर्म में पवित्रता लावे। तथा अपनी जीव्हा पर मधुरता को स्थान दे।
दक्षिणा में मुझे तम्बाकू , गुटका और मदिरा दे दे यही कथा में आपका त्याग होगा। क्योंकि कथा जीवन को सार्थक बनाती है। अंत में आप ने कहा जब सती ने राम की परीक्षा सीता बनकर ली तो शिव ने मौन धारण कर लिया क्योंकि वह सत्य को समझ गए। सती ने सत्य का दर्शन तो किया परंतु असत्य बोली। और शिव समाधि में चले गए यह कथा बतलाती है कि यदि कोई भूल हो जाए तो मौन हो जाव जिससे आने वाला क्लेष मिट जाता है।