हर अवस्था में ओम नमः शिवाय का जाप करना चाहिए-गिरी बापू

नेत्र और देहदान संसार से विदा होने के बाद भी सर्वश्रेष्ठ पुण्य कार्य है।
पुत्री के जन्म से ही जीवन तीर्थ बनता है।
सेंधवा रघुवंश पब्लिक स्कूल में आयोजित शिव महापुराण की कथा में सर्वप्रथम अहमदाबाद से पधारे चारण लाला जी ने जहां ओजपूर्ण वाणी में भजन गाया वहीं नगर की सनप्रीत कौर ने कोमल स्वरों में राम व शिव भक्ति पर आधारित भजन गाकर संसार सागर से पार करने की प्रार्थना की।
कथा प्रारंभ करते हुए आपने नेत्रदान और देहदान की प्रेरणा दी। आपने कहा कि रूद्र संहिता मैं शिव शक्ति की कथा है। ब्रह्मा जी अपने पुत्र प्रजापति दक्ष के यहां गये जहां पुत्र ने परिक्रमा कर पिता का सम्मान किया। ब्रह्मा जी निराशा के साथ प्रजापति से बोले तेरे पास वैभव के साथ सब कुछ है परंतु पुत्री के अभाव में जीवन अधूरा है।
पुत्री का जन्म ही जीवन को तीर्थ बनाता है। दक्ष पिता की सलाह से जंगल में घोर तप करने गए। जिससे भवानी प्रसन्न होकर पुत्री के रूप में जन्म देने का वरदान दिया परन्तु साथ ही यह भी कहा कि जिस दिन तुमा अभिमान करोगें। तो में अदृष्य हो जाउगी।
बापू ने कहा जिन माताओं ने बेटियों को जन्म दिया है उन्हें में प्रणाम करता हूं बेटी घर की लक्ष्मी है वह ससुराल जाकर महालक्ष्मी कहलाती है। बेटियों से आपने निवेदन किया कि वे अपने समाज में ही रहे। बेटी पिता का गौरव है वह देश का गौरव है बापू ने कहा बेटे के तरह बेटी भूल करे उसे क्षमा करे।
श्री गिरी बापू ने कहा की ओम शब्द में ब्रहमाण्ड सब इसमें समाहित है इसलिए हर अवस्था में ओम नमः शिवाय का जाप करना चाहिए। देवताओं से लेकर भूत पेत तक इसका जाप करते है।
दक्ष की प्रार्थना पर भवानी ने दसवे माह में जन्म लिया भवानी ने पहले कहा जब भी आप अभीमान करेगे तो मैं अदृश्य हो जाउगी। स्वयं जगदम्बा माँ के गर्भ में आई। आप ने गर्भ संस्कार का महत्व भी बताया। जिसमें गर्भवती के रहन-सहन, आचार-विचार आदी का वर्णन है। गायत्री परिवार में इसके संबंध में पुस्तक है।
भवानी के जन्म के समय उत्सव मनाया गया यह कथा इस और सकेंत करती है कि पुत्री का जन्म भाग्यवानों के घर ही होता।
सती का बाल्यकाल भी श्रेष्ठ रहा है। व्यक्ति स्वयं अपना जीवन जीने का अधिकारी है। सती बचपन से ही महादेव की परम भक्त रही है इसका अर्थ है कि जब कई जन्मों का पुण्यउदय होता है तभी जन्म के साथ ही बालक शिव भक्त बनाता है।
सती महाशक्ति होकर भी सामान्य बालकों की तरह रही उन्होंने कोई चमत्कार नहीं किया यह इस और संकेत करता है कि संसार में परमात्मा की आराधना से बढ़कर कोई चमत्कार नहीं है। बापू जी ने बाल्यकाल से लेकर सती के चले जाने तक की कथा में जीवन से जुडें कई सत्यों का उल्लेख किया है। जिसका का सार है कि अहंकार व्यक्ति को भवानी से भी दूर कर देता है।