समय की साधना ही जीवन का सत्य है-पूज्य गिरी बापू

शुभ बोलकर शुभ फलित करें यही जीवन है।
शिव के हजार नाम विष्णु के मुख से प्रकट हुए।
शास्त्र और शस्त्र का दाता शिव
सर्वत्र सुंदर फलित होना सुदर्शन चक्र का अर्थ है।
समय की साधना ही जीवन का सत्य है।
सेंधवा-रघुवंश पब्लिक स्कूल के प्रांगण में श्री गिरी बापू की शिव कथा के प्रारंभ में धीरूभाई अंबानी की स्कूल के संगीत शिक्षक श्री प्रभाकर शर्मा ने मन की पवित्रता को लेकर भजन प्रस्तुत किया।
व्यास गादी से श्री बापू ने कहा – जो महादेव की कथा का श्रवण करते हैं उन्हें अनगिनत पुण्य मिलता है। सृष्टि के आदि में केवल अंधकार था। इसी में से शिव और शक्ति का जन्म हुआ वे काशी में निवास करने लगे। उन्होंने विष्णु को प्रकट किया। जन्म के साथ ही विष्णु का प्रश्न था मैं कौन हूँ ? अर्थात अपने को पहचानना ही धर्म है।
शिव ने विष्णु को स्वयं से परिचित करवाया उन्हें पालनकर्ता का दायित्व दिया शिव ने कहा समय के साथ आप की प्रसिद्धि बढ़ती जाएगी। शिव के मुख से विष्णु के हजारों नामों का जन्म हुआ जो इनका पाठ करेगा वह सुख समृद्धि को प्राप्त करेगा।
भारत में जन्म के स्थान पर विदाई का महत्व है क्योंकि जन्म और मृत्यु के बीच की भूमि हमारी है। इसमें किए कर्म ही हमारी पूंजी है। इसमें शिव के हजारों नामों का पाठ करना चाहिए या समय और श्रद्धा के अनुसार पाठ करें। ऐसा करने से रक्तकण गंगा की तरह पवित्र हो जाते हैं और शरीर के रोम तीर्थ स्वरूप ग्रहण कर लेते हैं। अतः हमें शुभ बोल कर शुभ फलित करना चाहिए।
विष्णु ने शहस्त्र कमलों से शिव की आराधना की परन्तु एक कमल कम था। अत: राजीव लोचन विष्णु ने अपना नेत्र अर्पित करने का प्रयास किया। और प्रसन्न होकर शिव ने सुदर्शन चक्र दिया सुदर्शन का अर्थ है चारों दिशाओं में सुंदर दिखना या सर्वत्र सुंदर फलित होना।
बलि शब्द का अर्थ है स्वयं को परमात्मा को समर्पित करना। जीव हिंसा नहीं।
इसी तरह काल भैरव मदीरापान नहीं करते यह भ्रम है।
हम शुद्व शाकाहारी भोजन करे यह धर्म है इसलिए आज पवित्र भोजन का संकल्प ले। असुर वहीं है जो मांशाहारी है। सार इतना है कि कल्याण का मार्ग शांकाहार से होकर जाता है।
शिव का दूसरा नाम त्रिपुरा भी है क्योंकि उन्होंने एक ही बाण से असुर द्वारा निर्मित तीन नगरों का विध्वंस किया था।
विष्णु ने लक्ष्मी को स्फटीक शिवलिंग दिया और उसने भी अपनी भक्ति से शिव को प्रसन्न किया। राम और कृष्ण की शिव के आग्रह करने पर शिव भक्ति ही मांगी। प्रसन्न होकर शिव ने सोमवार का दिन लक्ष्मी को अर्पित कर दिया और उसे महालक्ष्मी को वरदान दिया।
संसार में महादेव के पास से सभी ने वर्दान मांगे है परन्तु शिव ने किसी से वर्दान नहीं मांगा। जिसकी कोई चाहत नहीं है वही अवडरधानी हो सकता है।
दूसरों का वैभव देखकर जो दुःखी नहीं होता वह सच्चा शिव भक्त है। हम जीवनभर अपने हितों के लिए भागते रहते है। जबकि अंत में मृत्यु के अतिरिक्त कुछ नहीं मिलता। अतः समय की साधन ही जीवन का सत्य है।