जो अपने माता पिता का सम्मान करता है वहीं श्रेष्ठ है-बापू

*’जिसके हृदय में सबके कल्याण का भाव है वह शिवभक्त है।’*
*शिव पूजन सद-चीत् और आनंद का दाता है।*
रघुवंश पब्लिक स्कूल सेंधवा में व्यास गादी से श्री गिरी बापू की कथा के तीसरे दिवस का प्रारंभ *नगर के गौरव फिल्म गायक श्री अभय जोधपुरकर* द्वारा प्रस्तुत राम की महिमा के गायन से हुआ। आपने शंभू शिव शंभू स्वयंभू का शास्त्रीय गायन शब्द और नाद के ऐसे तालमेल से किया कि जनमानस शिव साधना में डूब गया।
श्री बापू ने अपनी ओर से कथा का प्रारंभ सोमवार के साथ एकादशी के मिलन पर शिव चालीसा के गायन से किया।
क्रोध विवेक का नाश करता है। नारद की कथा यही संदेश देती है। इसलिए जप-तप-साधना को गोपनीय रखना चाहिए। नारद, शिव और हरि दोनों के लिए परम भक्त है परन्तु चूकिं शिव के उपदेश को नहीं माना इसलिए अशांत है।
ऐसे में श्री हरि ने कल्याण के लिए शिव उपासना का मार्ग बतलाया। उन्होंने कहा मौन भी शिव साधना है इसलिए मौन रहकर शिव साधना करना चाहिए। शिव परब्रह्म है। वह रजो, तपो और सतो गुण से परे है। वह गुणातीथ है।
शिव निराकार है और शंकर साकार है वह निराकार होकर भी भक्तों के लिए साकार होता है शिवचरित्र आनंद है उसके उनेकों नाम है तमिल ग्रंथ में शिव के दस हजार नामों का उल्लेख है। श्री हरि ने बार-बार कहा है कि शिव की तरह कोई दाता नहीं है।
श्री वेदव्यास ने भी उल्लेख किया है कि कलयुग में ब्रहाम्ण भी महादेव को त्याग कर लालच के कारण भटकते रहेंगे। अतः जिसका तन-मन और वाणी शिव को समर्पित है वही पंडित है ऐसा व्यक्ति शरीर मन और वाणी से शिव की शरण में चला जाता है। ऐसा व्यक्ति पंडित, गुणी और पवित्र आत्मा है।
मूर्ति पूजा सनातन नहीं है। पूजा केवल प्रयोग है पूजा करते हुए सूक्ष्म में गति करना चाहिए।
श्री हरि कहते है शिव का नाम संसार के सागर से पार करने का माध्यम है। देवगण भी शिव भक्तों पर अमृत की वर्षा करते है। हमें शिव पूजन उसी ब्राहम्ण से करवाना चाहिए जिसके मस्तक पर भस्म का त्रिपूट हो वर्तमान में दक्षिण भारत ही शिव मय है। वहा हर व्यक्ति के मस्तक पर त्रिपूट होता है। शिवभक्ति उसी को मिलती है जिस पर उसकी कृपा बरसती है। अतः शिव के समान ही शिव भक्त भी श्रेष्ठ है।
श्री हरि नारद के गुरू है उन्होंने स्वयं की अपेक्षा शिव पूजन का संदेश दिया किन्तु संसार में गुरू अपनी पुजा करवाने में लगे है।
नारद ने अपने पिता ब्रहमा की परिक्रमा की और आशिर्वाद लिया इसी तरह गणेश ने जब माता पार्वती और शिव की परिक्रमा की तो वे संसार में पूज्यनीय हो गये। इस तरह जो अपने माता पिता का सम्मान करता है वहीं श्रेष्ठ है।