शांति के गर्भ में ही समस्त सुख निवास करते है।
शांत ह्दय की भूमि पर ही आंनद बरसता है।
आदि अनादि मंत्र ओम नमः शिवाय
मौन और शांति के गर्भ में समस्त सुख है।
दूसरे दिन की कथा का प्रारंभ करते हुए श्री गिरी बापू ने कहा कि उमापति के स्मरण से ही शरीर रूपी भवन में स्थित अमंगल कारी तत्व का हरण होता है। तुलसीकृत मानस का प्रारंभ शिव कथा से होता है, तो शिव पुराण का प्रारंभ राम कथा से होता है।
यहां तप के अभिमान में नारद द्वारा शिवगणों और विष्णु को श्राप दिया गया है।
अहंकार से नारद का ह्रदय अशांत है, इसी अशांति को दूर करने के लिए विष्णु अपने मुख से ‘ओम नमः शिवाय’ मंत्र की शरण में जाने का संदेश देते हैं।
जो आदि और अनादि है सभी मंत्र और वेदों का उद्गम है। यह ग्रहों की हो या संस्कारी समस्त पीड़ा का अंत करता है। इसका जाप श्रीहरि और ब्रह्मा भी करते हैं।
राम हो या कृष्ण, पांडव हो या दशरथ जी सभी महादेव का मंत्र जपते हैं।
यह मंत्र शिव के मुख से प्रकट हुआ है। यह सभी विद्याओं का उद्गम है। यह वट वृक्ष के बीच की तरह है इसमें जगती के कल्याण का भाव है।
शिव के आंगन में वर्ण भेद नहीं है। यहा ब्राह्मण और शूद्र सब बराबर है। उसका चरित्र निर्मल है उसके पास शांति है। शांति के गर्भ में ही समस्त सुख है। हृदय के शांत सरोवर में ही आनंद बरसता है।
शिव मंत्र विश्व के सात करोड़ मंत्रों में श्रैष्ठ है। जिसके मन में यह मंत्र स्थित हो जाता है। उसे कुछ भी पढ़ने की आवश्यकता नहीं है यदि हृदय और मन में भी स्थित नहीं हुआ तब उसकी जीव्हा पर भी यह स्थित हो जाए तो जीवन सफल हो जाता है। क्योकि शांत ह्दय की भूमि पर ही आनंद बरसता है।
शांति के लिए भस्म का त्रिपुण्ड करने की सलाह विष्णु ने नारद को दी है। वर्तमान में अनेकों तिलक विभिन्न धर्म गुरूओं का लोगो (प्रतिक) बन गया है। यदि हम सनातन की रक्षा करना चाहते है तो संगठन जरूरी है।
शिव को श्मशान की भस्म नहीं चढ़ती है। भस्म का अर्थ एक दिन सब नष्ट हो जाएगा।
इसलिए कहते है भस्मांग रागाय नमः शिवाय्
जिनका कभी जन्म और मृत्यु नहीं हुई है उसी ने जगत की रचना की है। सृजन का लय और प्रलय की व्यथा महादेव में निहित है। संत ने कहा जो चमत्कार दिखलाता है वह मदारी है, संत नहीं
अंत में आपने रूद्राक्ष के महत्व पर प्रकाश डाला जो शिव स्वरूप है।