शिव पुराण अलौकिक रहस्य से भरा ग्रंथ
ह्दय में सबके लिए कल्याण का भाव ही शिवलोक है
श्रध्देय गिरि बापू ने प्रथम दिन बतलाया कि इस ग्रंथ में 24000 श्लोक हैं। भक्त वह जो शिव से मोक्ष के स्थान पर भक्ति चाहता है। आपने बतलाया कि भक्त वह जो आत्मानंद में डूबा रहता है।
शिवरात्रि शिव-पार्वती के विवाह का उत्सव नहीं है यह भोग की नहीं वियोग की रात्रि है। वियोग की अग्नि में तपकर ही शिवरत्न की प्राप्ति होती है।
आपने संदेश दिया कि शिव पुराणों में तोटके नहीं है, यह ज्ञान का ग्रंथ है जो राग से विराग की ओर ले जाता है। शिव भक्त वह नहीं है जो गांजा भांग धतूरे के नशे में भगवान को देखता है बल्कि वह सबके कल्याण की कामना करता है।
कोई भी धर्म ग्रंथ हो अथवा देवताओं की प्रतिमा हो उसे दूर से ही प्रणाम करना चाहिए। खिले पुष्प और प्रसन्न मुख दोनों से ही परमात्मा की आराधना की जा सकती है।
परमधाम वह है जहाँ शिवपुराण की कथा होती है। आपने बतलाया की भाग्य केवल पुरुषार्थ और महादेव के प्रति आस्था से बनता है।
शिवपुराण विवेक के साथ जीवन और वाणी में समन्वय लाता है। यह भक्ति देता है जो पुण्य का प्रतिफल है। यह सज्जनों की साधना है। अशांत हृदय को जो शांति देता है ऐसा देव ही महादेव है।
शिवपुराण विवेक के साथ जीवन ओर वाणी में समन्वय लाती है। यह सज्ज्नों की साधना है जो मानव मात्र को भयरहित करती है।
आपने बतलाया कि शम्भू का अर्थ है जो स्वयं जन्मा है यही कारण है कि उसे हम जगत पिता कहते है वह प्राणी मात्र के लिए सबकुछ है।
राम और कृष्ण ने भी कभी यह नहीं कहा कि यह सामर्थ हमारा है बल्कि उन्होनंे अपने सामर्थ के लिए महादेव का ही नाम लिया है।